गरियाबंद। समाज कल्याण विभाग गरियाबंद में शासकीय राशि के गबन का एक गंभीर मामला सामने आया है। जिला सिटी कोतवाली गरियाबंद में पदस्थ थाना प्रभारी को 31 जुलाई 2025 को उप संचालक समाज कल्याण गरियाबंद दोनर प्रसाद ठाकुर द्वारा एक लिखित आवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसमें दो पूर्व अधिकारियों पर शासकीय राशि का दुरुपयोग कर गबन करने का आरोप लगाया गया है। आवेदन की जांच के आधार पर आरोपी मुन्नीलाल पाल (पूर्व उप संचालक, वर्ष 2018-2022) और एल.एस. मार्को (पूर्व उप संचालक, वर्ष 2015-2018) के विरुद्ध थाना सिटी कोतवाली गरियाबंद में धारा 409, 34 भादंवि के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है। 






विदित हो कि, रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर द्वारा दोनों अधिकारियों के खिलाफ लोक आयोग रायपुर में लिखित शिकायत दर्ज कराई गई थी। इस शिकायत की जांच के लिए कलेक्टर गरियाबंद के आदेशानुसार तीन सदस्यीय संयुक्त जांच समिति गठित की गई, जिसमें अपर कलेक्टर अरविंद कुमार पांडे, जिला कोषालय अधिकारी पीसी खलखो और उप संचालक समाज कल्याण दोनर प्रसाद ठाकुर शामिल थे। जांच समिति द्वारा गहराई से की गई पड़ताल में यह पाया गया कि ‘राज्य निराश्रित निधि’ (SRC) के नाम से जारी चेकों का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड कार्यालय में मौजूद नहीं है। तत्कालीन उप संचालकों द्वारा भेजे गए मांग पत्रों की न तो जावक पंजी में प्रविष्टि की गई थी, न ही संबंधित नस्तियां संधारित की गई थीं।

 जारी चेक किन फर्मों को और किस प्रयोजन के लिए भुगतान किए गए, इसकी भी कोई जानकारी कार्यालय में उपलब्ध नहीं थी। जांच में सहायक ग्रेड-2 ओमप्रकाश सिन्हा, सहायक ग्रेड-3 पीलाराम वर्मा और सहायक ग्रेड-2 पवन कुमार सोनी के कथन लिए गए। साथ ही संबंधित बैंकों और वरिष्ठ कार्यालयों से दस्तावेज जुटाए गए, जिनके विश्लेषण से यह पुष्टि हुई कि तत्कालीन अधिकारियों द्वारा बिना वैधानिक प्रक्रिया के 3 करोड़ 25 लाख 50 हजार रुपये का अनुचित आहरण किया गया। संयुक्त जांच समिति के प्रतिवेदन में यह भी दर्ज है कि उक्त राशि का उपयोग अधिकारियों द्वारा निजी कार्यों में किया गया, जिससे यह स्पष्ट रूप से शासकीय धन का गबन माना गया। समिति ने इस गंभीर वित्तीय अनियमितता को गंभीर आर्थिक अपराध की श्रेणी में रखते हुए विधिक कार्रवाई की संस्तुति की।

 बनिया थाना प्रभारी द्वारा प्राप्त आवेदन पर त्वरित संज्ञान लेते हुए आरोपी मुन्नीलाल पाल और एल.एस. मार्को के विरुद्ध मामला दर्ज कर विवेचना प्रारंभ कर दी गई है। मामले में अन्य संबंधित दस्तावेज और कर्मचारियों के बयान भी शामिल किए जा रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैं और आने वाले दिनों में इस प्रकरण में अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता भी उजागर हो सकती है। मामले को देखकर लगता हैं कि, इसके तार बहुत गहरे जुड़े हुए हैं और अभी केवल पुंछ निकली हैं हाथी आना तो अभी बाकी हैं ...  यह मामला न केवल प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि समाज कल्याण जैसी संवेदनशील योजनाओं से जुड़े वित्तीय प्रबंधन पर भी गंभीर चिंता जताता है।  

 

कैसे हुआ घोटाला?

जांच में पाया गया कि 2016 से 2019 के बीच रायपुर संचनालय से जागरूकता अभियान, पेंशन योजना, दिव्यांग प्रोत्साहन योजना और पुनर्वास शिविर जैसी योजनाओं के नाम पर बिना कलेक्टर की अनुशंसा के धनराशि स्वीकृत कराई गई। यह राशि विभाग के मूल खाते में न जाकर गरियाबंद और धमतरी के निजी बैंकों में खोले गए फर्जी खातों में जमा की गई और फिर चेक के माध्यम से निकाली गई।

धन निकासी का विवरण

26 सितंबर 2016: यूनियन बैंक रायपुर से 22 लाख रुपये का चेक निकाला गया।

24 नवंबर 2017: पंजाब नेशनल बैंक रायपुर से 25 लाख रुपये निकाले गए।

22 जून 2018: 83 लाख रुपये तीन चेकों के जरिए निकाले गए (28 लाख, 28 लाख और 27 लाख)।

1 मार्च 2019: कोटक महिंद्रा बैंक से 48 लाख रुपये निकाले गए।

10 मार्च 2019: 49 लाख रुपये का चेक जारी किया गया।

19 और 20 अगस्त 2019: क्रमशः 49.50 लाख और 49 लाख रुपये की निकासी की गई।

धमतरी में भी हो सकता है बड़ा घोटाला

गरियाबंद में 3.25 करोड़ के गबन के बाद अब धमतरी में 8 करोड़ रुपये के घोटाले की आशंका है। मुन्नीलाल पाल 2012 से 2022 तक धमतरी में विभिन्न पदों पर कार्यरत था। खबर है कि वहां भी इसी तरह फर्जी खाते खोलकर करोड़ों रुपये निकाले गए हैं। यदि वहां जांच होती है, तो गरियाबंद से भी बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।

अब देखना यह होगा कि आगे की जांच में और कौन-कौन इस घोटाले में संलिप्त पाए जाते हैं। और कानून इस गंभीर आर्थिक अपराध में दोषियों को किस प्रकार न्याय के कठघरे तक पहुंचाता है।  जांच में रायपुर संचनालय के तत्कालीन संचालक पंकज वर्मा की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। आपको बता दे कि ,ऐसा ही एक किस्सा मुजफ्फरनगर के समाज कल्याण विभाग का है जहा जिला समाज कल्याण अधिकारी रिंकू राही ने समाज कल्याण विभाग में करोड़ों की हेराफेरी वाला बड़ा घोटाला उजागर किया था। 

क्या हैं मुजफ्फरनगर का मामला ?

बतौर जिला समाज कल्याण अधिकारी रिंकू राही को मुजफ्फरनगर में विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के तहत जारी होने वाले धन आवंटन में गंभीर विसंगतियां मिलीं। पांच वर्षों के दौरान लाभार्थियों को दी जाने वाली राशि का ब्यौरा जांचा तो करोड़ों का घपला पकड़ में आ गया। दस करोड़ से अधिक की रकम की हेराफेरी सीधे तौर से दिखी। 101 स्कूलों में स्कालरशिप के संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। वृद्धावस्था योजना-विधवा पेंशन योजना के लाभार्थियों की जानकारी तक न मिल सकी। जिन परिवारों में बेटी नहीं थी उन्हें भी पुत्री विवाह योजना की धनराशि दे दी गई। विभिन्न मदों से संबंधित धन आवंटन को लेकर इन्होंने सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत आवेदन भी किया। पर कोई जानकारी न मिल सकी। केंद्रीय सूचना आयोग तक शिकायत की। पर तमाम कोशिशों के बावजूद मुक्कमल जानकारी मिल नहीं सकी। मेरठ की संयुक्त निदेशक समाज कल्याण अलका टंडन की कमेटी ने बीस करोड़ का घपला पकड़ा। फिर मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर मृत्युंजय नारायण की समिति ने पचास करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट शासन को भेजी। इसके बाद इस मामले में एसआईटी गठित की गई। 

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